लखनऊ। आप यह जानकार शायद चौंक जाएँ कि दूषित हवा में सांस लेने के दौरान यदि लेड यानी सीसा अगर बच्चों के शरीर में चला जाता है तो वह बच्चा हिप अर्थराइटिस का शिकार हो सकता है यही नहीं यही सीसा अगर गर्भवती माँ के शरीर में चला जाता है तो होने वाले बच्चे में जन्म के समय से ही क्लब फीट यानी टेढ़े पैर की बीमारी हो सकती है. घरों के अन्दर यह लेड यानि सीसा इनवर्टर की या फिर दूसरी बैटरी से निकलने वाले धुएं में होता है. यह महत्वपूर्ण जानकारी किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के हड्डी के बाल विभाग के प्रोफ़ेसर अजय सिंह ने दी.
डॉ. अजय सिंह आजकल टर्की में चल रही एशिया पैसिफिक आर्थोपेडिक एसोसिएशन कांग्रेस 2018 में किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज के पीडियाट्रिक ऑर्थोपेडिक विभाग का प्रतिनिधित्व करने गए हैं. इस सम्मलेन में डॉ. अजय सिंह ने इसी विषय पर अपना प्रेजेंटेशन दिया जिसे दुनिया भर के लोगों ने सराहा. उन्होंने बताया कि यह रिसर्च डॉ. अब्बास अली मेहदी के साथ की गयी थी. इस रिसर्च में पाया गया है की दूषित वातावरण में सांस लेने के कारण बच्चों को हड्डी से संबंधित एक बीमारी हो जाती हैं, इसे हिप अर्थराइटिस कहा जाता है।
बच्चों में होने वाली हिप अर्थराइटिस की बीआरी की स्टडी डॉक्टर अजय सिंह ने 77 बच्चों के ऊपर की है। डॉ अजय ने इसी से जुड़ी दूसरी रिसर्च के बारे में बताया कि कुछ बच्चों में एक जन्मजात बीमारी क्लब फुट पाई जाती है, इसमें बच्चे के पैर जन्म से ही टेढ़े होते हैं। उन्होंने बताया कि 200 से ज्यादा लोगों के ऊपर की गई स्टडी में यह पाया गया कि इनवर्टर की बैटरी आदि से निकलने निकला हुआ धुआं, जिसमें लेड यानी सीसा था, का मां के द्वारा सेवन करने से उसके होने वाले बच्चे पर यह असर पड़ा।
दुर्घटना में घायल बच्चे का यह टेस्ट जरूर करवाएं
डॉ. अजय सिंह ने दुर्घटना में घायल होने वाले बच्चों में होने वाले एक सिंड्रोम के बारे में बताया कि इसे ट्रॉमा कंपार्टमेंट सिंड्रोम कहते हैं। यदि समय रहते इसकी पहचान न कर ली जाये तो इस सिंड्रोम के चलते बच्चे का प्रभावित अंग काटने की नौबत आ जाती है. बच्चों के केस में इसका विशेष ख़याल रखना पड़ता है. उन्होंने बताया कि इस सिंड्रोम का असर बाद में दिखता है लेकिन तब तक समय निकल चुका होता है। इससे बचने के लिए उन्होंने सुझाव दिया कि इमरजेंसी में आने वाले बच्चे का ब्लड टेस्ट करके उसके बायो मार्कर, जो एक प्रकार का केमिकल होता है, को चेक किया जाना चाहिए। इस केमिकल को क्रिएटिनिन किनासेस कहते हैं। उन्होंने बताया कि यह टेस्ट चोट लगने के 4 घंटे के अंदर हो जाना चाहिए। उन्होंने बताया इसका फायदा यह होगा कि भविष्य में यदि बच्चे का चोट लगने वाला अंग खराब हो रहा होगा तो उसे बचाया जा सकता है।