जिस घड़ी के लिए बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती ने 22 साल पहले के शर्मनाक काण्ड पर खून का घूँट पिया, सामने मिलने पर दुआ-सलाम करने से भी परहेज करने वाले और नदी के दो किनारे बन चुके दलों को अपना-अपना अहम छोड़कर साथ आना पड़ा, उस कुर्बानी की असली परीक्षा की घड़ी नजदीक आ गयी है. जी हाँ हम बात कर रहे हैं उत्तर प्रदेश से राज्यसभा की 10 सीटों पर शुक्रवार 23 मार्च होने वाले मतदान की. हालांकि आज की राजनीति में ऊँट कब किस करवट बैठ जाये, नहीं कहा जा सकता है लेकिन अगर मोटे अनुमान से देखा जाये तो बहुजन समाज पार्टी के लिए राज्यसभा में अपना सदस्य जितवा पाना बहुत मुश्किल होगा क्योंकि वोटों के गणित में बसपा की राह आसान नहीं है, बसपा को अपने सदस्यों के अलावा 18 वोट की दरकार है जबकि भाजपा के चाणक्य अमित शाह ने ऐसी रणनीति बनायी है कि सीट भाजपा को ही हासिल हो. आवश्यक वोटों के लिहाज से भी भाजपा को अपने वोटों के अलावा बसपा की आवश्यकता से आधे यानी 9 वोटों की जरूरत है.
बसपा की इस सीट को जितवाने का बड़ा दायित्व समाजवादी पार्टी का भी है क्योंकि अखिलेश जानते हैं कि जिस बसपा का साथ लेकर उन्होंने उपचुनाव में गोरखपुर और फूलपुर की लोकसभा सीटों पर सपा का परचम फहराया है, वही बसपा राज्यसभा की सीट हारने पर सपा के साथ किस तरह से पेश आयेगी. अखिलेश भी इस गणित को समझते हैं कि बसपा की जीत मुश्किल है, इसको इस तरह भी समझा जा सकता है कि समाजवादी पार्टी के अपने सभी वोट बसपा को मिलने की कोई उम्मीद नहीं लगती है क्योंकि सूत्र बताते हैं कि सपा के कद्दावर नेता मोहम्मद आजम खान बसपा के साथ हुए गठबंधन के ही घोर विरोधी हैं, ऐसे में खुद उनका और उनके समर्थक विधायकों का वोट बसपा को जाने की संभावना नहीं है. शायद इसीलिये अखिलेश के करीबी राम गोविन्द चौधरी ने कल यह बयान दिया है कि 2019 के चुनाव में मायावती प्रधानमंत्री बनेंगी और अखिलेश यूपी संभालेंगे. मतलब यह कि राज्यसभा चुनाव हारने के बाद भी मायावती सपा के मायाजाल में फंसी रहें.
अब हम बताते हैं कि बसपा और भाजपा किस रणनीति के तहत 10वीं सीट की लड़ाई को अपने-अपने पक्ष में करने में जुटी हैं. गुजरात में राज्यसभा चुनाव के दौरान जिस तरह से भारतीय जनता पार्टी ने अहमद पटेल को राज्यसभा पहुंचने से रोकने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंकी थी, कुछ इसी तरह से इस बार पार्टी उत्तर प्रदेश में मायावती के उम्मीदवार को राज्यसभा भेजने से रोकने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक रही है। शुक्रवार को उत्तर प्रदेश की 31 राज्यसभा सीटों में से 10 सीटों पर फैसला होगा कि किस पार्टी का उम्मीदवार सदन में पहुंचेगा। यूं तो भाजपा के पास 8 उम्मीदवारों को सदन भेजने व सपा के पास एक उम्मीदवार को सदन में भेजना के लिए पर्याप्त संख्या है, लेकिन 10वीं सीट के लिए सपा-बसपा-कांग्रेस-भाजपा-आरएलडी के बीच जद्दोजहद जारी है।
राज्यसभा के नामांकन की तारीख खत्म होने से पहले 10 सीटों के लिए कुल 10 नामांकन किए गए हैं जिसमे से 8 पर भाजपा, एक पर सपा और एक पर बसपा के उम्मीदवार ने नामांकन भरा है। तीनों ही पार्टी अपने उम्मीदवार की जीत को लेकर आश्वस्त हैं। आपको बता दें कि राज्यसभा में पहुंचने के लिए उम्मीदवार को 37 विधायकों के वोट की जरूरत होती है। लेकिन भाजपा के पास 300 से अधिक विधायक हैं, ऐसे में भाजपा आसानी से अपने 8 सदस्यों को राज्यसभा में भेज सकती है। सपा के पास 47 विधायक हैं, लिहाजा उसके पास एक सदस्य को राज्यसभा भेजने के बाद भी 10 अतिरिक्त वोट हैं। वहीं मायावती के पास कुल 19 विधायक हैं, ऐसे में उन्हें 18 अतिरिक्त विधायकों के समर्थन की जरूरत पड़ेगी ताकि वह अपने उम्मीदवार को राज्यसभा भेज सकें।
सपा ने पहले ही साफ किया है कि वह अपने 10 विधायकों का वोट बसपा को देगी, जबकि अजीत सिंह की पार्टी ने अपने एक विधायक का समर्थन बसपा को देने का ऐलान किया है। वहीं कांग्रेस अपने 7 विधायकों का समर्थन भी बसपा को देने को तैयार है। लिहाजा इस गणित से मायावती के उम्मीदवार आसानी से राज्यसभा पहुंच सकता है। लेकिन मायावती के गणित को खराब करने के लिए भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने नई रणनीति अपनाई और आखिरी समय पर अपनी पार्टी की ओर से 9वें उम्मीदवार का नामांकन भरवाया। ऐसे में साफ है कि मायावती के उम्मीदवार के लिए मुश्किल खड़ी हो सकती है।
मायावती के उम्मीदवार भीमराव अंबेडकर और भाजपा के नौंवे उम्मीदवार अनिल अग्रवाल के बीच राज्यसभा को लेकर टक्कर होगी। माना जा रहा है कि मायावती के गणित को बिगाड़ने के लिए अमित शाह ने नरेश अग्रवाल को पार्टी में शामिल किया है, जोकि कांग्रेस, बसपा और सपा तीनों ही पार्टी में रह चुके हैं। नरेश अग्रवाल के बेटे खुद विधायक हैं, लिहाजा वह भाजपा उम्मीदवार को अपना वोट दे सकते हैं, इसका मतलब साफ है कि मायावती के खाते से सपा का एक वोट कट जाएगा।
नरेश अग्रवाल के भाजपा में आने के बाद भाजपा लगातार इस बात की कोशिश कर रही है कि बसपा का उम्मीदवार राज्यसभा नहीं पहुंचने पाए। हालांकि कांग्रेस को इस बात का भरोसा है कि उसके सभी सात विधायक बसपा के पक्ष में अपना वोट देंगे, लेकिन अखिलेश यादव की पार्टी के विधायकों को लेककर संशय बरकरार है। कई ऐसे सपा विधायक हैं जोकि शिवपाल समर्थक हैं और वह पार्टी के खिलाफ वोट कर सकते हैं। इससे पहले भी राष्ट्रपति के चुनाव में सपा के कुछ विधायकों ने भाजपा उम्मीदवार रामनाथ कोविंद को अपना वोट दिया था।
भाजपा के पास 8 उम्मीदवारों को राज्यसभा भेजने के बाद 28 अतिरिक्त विधायक हैं, ऐसे में पार्टी के उम्मीदवार अनिल अग्रवाल को कुल 9 वोट चाहिए जिसकी बदौलत वह बसपा उम्मीदवार को इस रेस से बाहर कर सकते हैं। भाजपा के पास तीन निर्दलीय विधायकों का समर्थन है। वहीं पार्टी के पास निषाद पार्टी के विजय मिश्रा का भी समर्थन मिल सकता है। लेकिन भाजपा को अपने नौंवे उम्मीदवार को राज्यसभा भेजने के लिए अपना दल और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के विधायकों की जरूरत होगी, दोनों की पार्टी के विधायक योगी सरकार में मंत्री हैं।